Tuesday, 18 July 2017

योगी आदित्यनाथ उर्फ़ ठाकुर अजय सिंह

राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास

योगी आदित्यनाथ उर्फ़ ठाकुर अजय सिंह एक क्षत्रिय संत,जो रखते हैं एक हाथ में माला और दूसरे में भाला'

योगी आदित्यनाथ उर्फ़ ठाकुर अजय सिंह जो एक हाथ में माला और दूसरे में भाला रखते हैं------


आदि काल से क्षत्रिय समाज में ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने शस्त्र के साथ साथ शास्त्रों में भी निपुणता हासिल कर विश्व को धर्म का ज्ञान दिया है,जिनमे महर्षि विश्वामित्र,भगवान बुध,महावीर स्वामी,ऋषभदेव,पार्श्वनाथ आदि प्रमुख हैं.भगवान श्रीकृष्ण ने भी क्षत्रिय वर्ण में जन्म लेकर ही विश्व को गीता का ज्ञान दिया है ......
इसी कड़ी को आगे बढाया है पूर्वांचल के शेर कहे जाने वाले गोरखनाथ पीठ के उत्तराधिकारी औरबीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ जी ने..............

योगी आदित्यनाथ जी का प्रारंभिक जीवन------

इनका जन्म उतराखण्ड के गढवाल में 05 जून 1972 को एक राजपूत परिवार में हुआ था.इनका वास्तविक नाम अजय सिंह है।उन्होंने गढ़वाल विश्विद्यालय से गणित से बी.एस.सी किया है। BSC करने के पश्चात् वे गोरखपुर आकर गुरु गोरखनाथ जी पर शोध कर ही रहे थे की गोरक्षनाथ पीठ के महंथ अवैद्यनाथ की दृष्टि इनके ऊपर पड़ी.महंत जी के प्रभाव में आकर अजय सिंह का झुकाव अध्यात्म की और हो गया,जिसके बाद उन्होंने सन्यास गृहण कर लिया.महंत जी की दिव्यदृष्टि अजय सिंह के भीतर छुपी प्रतिभा को पहचान गयी. और उन्होंने अजय सिंह को नया नाम दिया योगी अदियानाथ........

----------गोरक्षपीठ का इतिहास--------

गोरखपुर गोरक्षनाथ की धरती कही जाती है ये भूमि नेमिनाथ, महंथ दिग्विजय नाथ जैसे तमाम तपस्वी और राष्ट्र भक्तो की तपस्थली रही है,जब देश में सूफियो द्वारा धर्मान्तरण का कुचक्र चलाया जा रहा था उस समय गुरु गोरखनाथ ने पुरे भारत में अलख जगाकर धर्मान्तरण को रोका, इतना ही नहीं महंथ दिग्विजयनाथ जी ने देश की आज़ादी के संघर्ष में केवल सेनापती के सामान काम ही नहीं किया बल्कि हिन्दू समाज को बचाने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई वे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भी चुने गए, इतना ही नहीं कांग्रेसियों ने तो यहाँ तक प्रचार किया की गाधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने महंथ दिग्विज्यनाथ जी की सलाह पर ही नहीं,बल्कि उनकी रिवाल्बर से की.
महंत दिग्विज्यनाथ भी सन्यासी बनने से पहले चितौडगढ़ के राजपूत परिवार में जन्मे थे.......

---योगी आदित्यनाथ की समाजसेवा और हिंदुत्व---


जब सम्पूर्ण पूर्वी उत्तर प्रदेश जेहाद, धर्मान्तरण, नक्सली व माओवादी हिंसा, भ्रष्टाचार तथा अपराध की अराजकता में जकड़ा था उसी समय नाथपंथ के विश्व प्रसिद्ध मठ श्री गोरक्षनाथ मंदिर के पावन परिसर में 15 फरवरी सन् 1994 की शुभ तिथि पर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक सम्पन्न किया।
अपने पूज्य गुरुदेव के आदेश एवं गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की जनता की मांग पर योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 1998 में लोकसभा चुनाव लड़ा और मात्र 26 वर्ष की आयु में भारतीय संसद के सबसे युवा सांसद बने।जनता के बीच दैनिक उपस्थिति, संसदीय क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले लगभग 1500 ग्रामसभाओं में प्रतिवर्ष भ्रमण तथा हिन्दुत्व और विकास के कार्यक्रमों के कारण गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की जनता ने आपको लगातार पांच बार रिकॉर्ड मतों से लोकसभा में भेजा...........

जिस प्रकार स्वामी दयानंद के अन्दर देश भक्ति की ज्वाला थी और देश बचाने, हिन्दुओ को बचाने के लिए आर्य समाज की स्थापना की उसी प्रकार योगी जी ने गोरक्ष मंदिर और अपने राजनैतिक कैरियर का उपयोग हिन्दुसमाज को बचाने,धर्मांतरण को रोकने और देश भक्ति की ज्वाला को जलाये रखने में किया.कहा जाता है कि इनके भीतर महंत दिग्विज्यनाथ जी की आत्मा का वास है.......................

इन्होने पूर्वांचल में इसाई मिशनरियों को कभी भी पैर जमाने का मौका नही दिया,
यही नहीं नेपाल के रास्ते देश में पनप रहे जेहादी आतंकवाद का भी डट कर मुकाबला किया,,,,,कई बार उन पर जानलेवा हमला हुआ,पर इससे हिंदुत्व और जनकल्याण की उनकी भावना पर तनिक भी फर्क नही पड़ा.* योगी जी ने 2005 में 5000 से ज्यादा हिन्दू से ईसाई बनाये गए लोगों को वापस हिन्दू बनाया |
> वो हमेशा एक बात कहते हैं "जब तक
भारत को हिन्दू राष्ट्र नही बना देता तब तक
नही रुकुंगा" |

हिन्दू हितों के रक्षक हैं,पर कट्टर ठाकुरवादी भी हैं--------

कई बार उन पर कुछ विरोधी ठाकुरवाद का भी आरोप लगाते हैं,क्योंकि हिंदुत्व के साथ साथ उन्होंने राजपूत समाज के साथ होने वाले अन्याय का भी पार्टी लाइन से उपर उठकर जम कर विरोध किया.
योगी आदित्यनाथ अकेले ठाकुर नेता थे जो दलगत राजनीती से उपर उठकर प्रतापगढ़ में हुए जिया उल हक हत्याकांड में झूठे फ़साये गये रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के समर्थन में भी खुल कर आगे आए।


लोकसभा में शेर की दहाड़-----------

अभी कुछ माह पूर्व योगी जी ने लोकसभा सत्र के दौरान देश में समान नागरिक संहिता और सख्त गौहत्या निषेध कानून बनाए जाने की पुरजोर हिमायत की,उनकी मुहिम का ही परिणाम था कि केंद्र सरकार इस दिशा में पहल करने के लिए तैयार हो गयी है.
लोकसभा मे साम्प्रदायिक हिंसा पर हो रही बहस में गोरखपुर से भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ जी ने जिस तरह से अपना पक्ष रखा है,उसने सेकुलरिज्म के नाम पर देशद्रोह की राजनीति करने वालों की धज्जियां उडा कर रख दी।
वाह वाकय् शेर ईसी तरह दहाडते है।

------उनके भाषण के कुछ अंश-------
1-मस्जिद मंदिर पास है केवल मंदिर के
लाउडस्पिकर हटाये गये मस्जिद के
लाउडस्पिकर वही रह गये क्या यही सेकुलरिज्म है?

2-मुसलमानों के खिलाफ जुल्म चाहे म्यांमार में हो या ईराक फिलिस्तीन में लेकिन उसके खिलाफ प्रदर्शन मुंबई और दिल्ली में क्यूँ होते है?

3-मेरठ में बालिका को बंधक बनाकर रेप हुआ लेकिन ये कांग्रेस और बाकि दल चुप रहे
4-ये कांग्रेस वाले आज़ाद मैदान वाले दंगो पर चुप रहते है।

5-असम में अली और कुली का नारा देकर बांग्लादेशियों को किसने बसाया?

6-देश में 12 लाख साधू संत हैं,लेकिन सिर्फ मौलवियो को सरकारी वेतन क्यों?

7-कांग्रेस असम के दंगो पर चुप क्यों हो गयी थी?

8-कब्रिस्तान की दीवार पर 300 करोड़ क्यों?श्मशान घाट की घेराबंदी क्यो नही?

9-मुस्लिम बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्पेशल फंड!!क्या हिन्दू बालिकाएं स्कूल नही जाती?

10-सहारनपुर में कोर्ट के आदेश के बावजूद विवादित जमीन पर गुरुद्वारा क्यों नही बनवाया?

11-सहारनपुर दंगे में शामिल कांग्रेस नेताओं पर क्या कार्यवाही की गयी?

12-क्या सेकुलरिज्म के नाम पर पाकिस्तान का अजेंडा लागु किया जा रहा है?

बेहद सटीक सवाल जिनका कोई जवाब कांग्रेस या दुसरे दलों पर नही था।
इंडिया टीवी पर आपकी अदालत में पूर्वांचल के शेर योगी आदित्यनाथ--------

आप सब ने इंडिया टीवी पर आपकी अदालत में पूर्वांचल के शेर योगी आदित्यनाथ का इंटरव्यू जरुर देखा होगा।
क्या क्या कहा योगी जी ने देखिये----------

* जो जिस भाषा से समझेगा उसको उस भाषा में समझाएगे।
* जिसका मन पाकिस्तान में है.तन भारत में है उसके लिए भारत में कोई जगह नहीं है।
* मुस्लिम की आबादी 10% से ज्यादा है वहीं होते क्यों होते हैं दंगे?
* मुहर्रम के समय एक हिन्दू लड़की को पुलिस के जीप से खीचकर दुर्व्यहार किया था तब हम प्रशासन के भरोसे नहीं बैठेगे।
* इस देश का कांग्रेसी प्रधानमंत्री कहता है कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुस्लिमो का है.तो हिन्दू क्या झक मारे।
* पाकिस्तान में सुन्नी मुस्लमान शियाओ का कत्लेआम और उनकी महिलाओ के साथ रैप,अपहरण कर रहे है...इस पर देवबंद ने क्यों फ़तवा नहीं जारी किया?
* देवबंद के मौलवी इस बात पर क्यों फ़तवा जारी नहीं करते कि हिन्दू लड़के के साथ मुस्लिम लड़की की शादी जायज है।
* जबरदस्ती धर्मान्तरण के लिए उन मौलवियों ,काजी को भी दण्डित करना चाहिए' जो मुस्लिम लडको को फर्जी हिन्दू बनाकर हिन्दू लडकियों के साथ शादी कराके उसका उत्पीडन करते है, उनके साथ भी वैसा व्यवहार करना चाहिए...
* आतंकियों का जब कोई मजहब नहीं है तो उसको ''मिट्टी का तेल ''छिड़कर जला दीजिये।
* ईसाई और मुस्लिम यदि ''हिन्दू''बनता है तो यह ''घर वापसी'''है यह धर्मान्तरण नहीं है।
* UP में 500 दंगे हुए लेकिन मेरे गोरखपुर में एक भी दंगा नहीं हुवा है ,,यही हिंदुत्व है !!"" वन्देमातरम।
* अगर बहुसंख्यक समाज सुरक्षित है तो अल्पसंख्यक समाज अपने आप सुरक्षित हो जाएगा।
* गांधी जी का तरीका की कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो,,ये सिधांत मानवो पर चल सकता है दानवो पर नहीं।
* संतों के एक हाथ में अगर माला हैं तो दुसरे हाथ में भाला है जो दानवी शक्तियों को सबक सिखाने और आत्म रक्षा के लिए है।
माना जा रहा था कि योगी आदित्यनाथ को बीजेपी यूपी में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी। इससे सत्ताधारी दल समेत सभी दलों की नींद उड़ गयी है।

लेकिन बीजेपी में उनके विरोधी इनपर जातिवाद और कट्टरता का आरोप लगाकर उनके रास्ते में अवरोध कर रहे हैं खुद मोदी और अमित शाह भी उनके झांसे में आ गए तो यूपी में बीजेपी की करारी हार होनी निश्चित है।

उनके विकास कार्यों से प्रभावित होकर गोरखपुर और आसपास के मुस्लिम लोग भी योगी जी का सम्मान करते हैं.
तभी तो वहां एक कहावत मशहूर है कि

"गोरखपुर में रहना है तो योगी योगी कहना है".

योगी आदित्यनाथ जी के इन्ही राष्ट्रवादी कार्यों को कुछ लोग सांप्रदायिक कहते है लेकिन यदि देश भक्ति और धर्म रक्षा सांप्रदायिक है तो सांप्रदायिक होना कोई गलत बात नहीं है.

आज ऐसे योगियों की देश को आवश्यकता है और भारत माता रत्नगर्भा है उसे पूरा ही करेगी.

 राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास
जय हिन्द,जय राजपूताना -------------

Wednesday, 12 July 2017

क्षत्रिय राजपूतो का इतिहास

राजपूत का मतलब

राजपूतो को तीन शब्दो मे प्रयोग किया जाता है
पहला '' राजपूत '' दूसरा "" क्षत्रिय '' तीसरा '' ठाकुर ,
Ranbanka
राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म "सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय" का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी। राजपूत को तीन शब्दों में प्रयोग किया जाता है,पहला "राजपूत",दूसरा "क्षत्रिय"और तीसरा "ठाकुर",आज इन शब्दों की भ्रान्तियों के कारण यह राजपूत समाज कभी कभी बहुत ही संकट में पड जाता है। राजपूत कहलाने से आज की सरकार और देश के लोग यह समझ बैठते है कि यह जाति बहुत ऊंची है और इसे जितना हो सके नीचा दिखाया जाना चाहिये,नीचा दिखाने के लिये लोग संविधान का सहारा ले बैठे है,संविधान भी उन लोगों के द्वारा लिखा गया है जिन्हे राजपूत जाति से कभी पाला नही पडा,राजपूताने के किसी आदमी से अगर संविधान बनवाया जाता तो शायद यह
छीछालेदर नही होती।

खूंख्वार बनाने के लिये राजनीति और समाज जिम्मेदार है

राजपूत कभी खूंख्वार नही था,उसे केवल रक्षा करनी आती थी,लेकिन समाज के तानो से और समाज की गिरती व्यवस्था को देखने के बाद राजपूत खूंख्वार होना शुरु हुआ है,राजपूत को अपशब्द पसंद नही है। वह कभी किसी भी प्रकार की दुर्वव्यवस्था को पसंद नही करता है।

शेर कुत्तों की लडाई
अक्सर जब शेर की ताकत क्षीण होने लगती है तो वह अपने को अपनी गुफ़ा के अन्दर समेट लेता है,वह जबरदस्ती में उसके शिकार पर अपना जीवन चलाने वाले कुत्तों के बीच में रहना पसंद नही करता है। कुत्तों की आदत होती है कि वे झुंड में रहकर अपना शिकार करते है,बडी बुरी तरह से शिकार को नोचते खाते है,उन्हे किसी भी तरह का दर्द नही होता है,जब वे किसी जबरदस्त के पास फ़ंस जाते है तो केवल अपनी पूंछ को हिलाने के अलावा और कुछ नही कर सकते है। कुत्ते अपना पेट मरे हुये जानवर की हड्डी के टुकडे से भी भर सकते है,लेकिन शेर को चाहिये होता है अपने ही द्वारा मारे गये जानवर का ताजा मांस वह किसी के मारे हुये जानवर को भी अपना भोजन नही बनाता है। उसे भूखा मरना पसंद है लेकिन वह किसी के मारे गये सडे मांस को कभी नही खायेगा,और किसी के द्वारा दिये गये सहानुभूति वाले भोजन को लेना तब तक पसंद नही करेगा जब तक कि उसे आदर पूर्वक भोजन नही दिया जाये। कुत्ते को भूख लगी होती है तो वह पूंछ हिलाकर आगे पीछे घूम कर अपने भोजन को लेने के चक्कर में रहता है,जब उसे किसी प्रकार से भोजन नही मिलता है तो वह चोरी से भोजन लेने की फ़िराक में रहता है,और जब उसे किसी तरह से भोजन नही मिलता है तो वह अपनी शक्ति को इकट्ठा करने के बाद खूंख्वार हो जाता है और फ़िर वह नही देखता है कि वह अपने मालिक को काट रहा है या अपने ही कुल को काट रहा है। शेर कितना ही भूखा होगा वह अपने मालिक को नही काटेगा,वह अपने कुल को नही काटेगा,अपने को एकान्त मे लाकर पटक देगा और वहीं मर बेसक जायेगा,लेकिन किसी भी तरह से अपमान का भोजन ग्रहण नही करेगा।

 राजपूत कहलाने से आज की सरकार और देश के लोग यह समझ बैठते है कि यह जाति बहुत ऊची है और इसे जितना हो सके इसे नीचा दिखाना चाहिये ।
राजपूत को नीचा दिखाने के लिये लोग संविधान का सहारा ले बैठे है , और संविधान भी उन लोगो के द्वारा लिखा गया है , जिनको कभी राजपूत जाति से पाला नही पडा है , राजपूताना के किसी आदमी से अगर यह संविधान बनवाया जाता , तो शायद आज यह छीछालेदर नही होती ।
राजपूतो को खूंखार बनाने के लिये राजनीति और यह समाज जिम्मेदार है , राजपूत कभी खूंखार नही था , उसे केवल रक्षा करनी आती थी , लेकिन समाज के तानो से और समाज की गिरती व्यवस्था को देखने के बाद राजपूत खूंखार होना शुरू हुआ है । राजपूतो को अपशब्द पसंद नही है , वह कभी भी किसी पर अत्याचार होता हुआ देखना पसंद नही करता है ।।

जिसकी तलवार की खनक से अकबर का दिल घबराता था ।
वो अजर अमर शूरबीर महाराणा प्रताप कहलाता था ।।


Tuesday, 28 February 2017

यूपी के बाहुबली

कहानी उस कत्ल की, जिसने यूपी में माफियाराज स्थापित कर दिया



गोरखपुर में रहना है, तो योगी-योगी कहना है.
योगी आदित्यनाथ
80 के दशक में छात्रों की एक दुकानदार से बहस हुई थी. वो दौर ही था बहसों का. बहस में दुकानदार ने पिस्तौल निकाल ली. बहस की गुंजाइश खत्म हो गई. पर डरने से तो पार्टी का पक्ष कमजोर हो जाता. छात्रों ने प्रदर्शन किया. एक लड़का एसएसपी आवास की दीवार पर चढ़ गया. गला फाड़ के चीखने लगा. यही लड़का बाद में योगी आदित्यनाथ कहलाया. पर उस वक्त योगी बच्चे थे. क्योंकि वो दौर था हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही का

ये वो दौर था जब गोरखपुर के गैंगवार की खबरों को बीबीसी रेडियो पर रोज सुनाता था. यूपी गोरखपुर की वजह से सीधा विश्व के पटल पर आ गया था.

क्या ये अद्भुत नहीं लगता कि जब जेपी देश में इंदिरा की सत्ता बदल रहे थे, उस वक्त कुछ नौजवान गोरखपुर के चिल्लूपार में बैठकर बंदूक की नाल साफ कर रहे थे?


गोरखपुर के दक्षिणांचल की सीट है चिल्लूपार. भोजपुरी में लोग जब धमकी देते हैं तो कहते हैं कि मारब त दक्खिन चल जइबा. चिल्लूपार वही वाला दक्खिन है. एक वक्त में यूपी की राजनीति इस छोटी सी विधानसभा से तय होने लगी थी. वीरेंद्र प्रताप शाही और श्री प्रकाश शुक्ला जैसे लोग यहीं से आते थे. शाही को तो शेरे पूर्वांचल भी कहा जाता था. ये वो तमगा है जो यूपी में जनता की पसंद को बताता है. ये बताता है कि जब आप देश में इंडस्ट्री नहीं लाएंगे और सब कुछ सरकारी ठेके से करेंगे तो लोग अपराध को इज्जत से देखने लगेंगे
वीरेंद्र प्रताप शाही
थोड़ा पीछे लौटते हैं. 1970 के दशक में देश में जेपी का आंदोलन चल रहा था. छात्र नेता देश को बदलने जा रहे थे. पर गोरखपुर के छात्र वर्चस्व कायम करने में जुटे थे. गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्रनेता बलवंत सिंह हुआ करते थे. दूसरी तरफ थे हरिशंकर तिवारी. बलवंत सिंह को एक नया लड़का मिला. अपनी जाति का. वीरेंद्र प्रताप शाही. अब जोड़ का तोड़ मिला था. तिवारी ब्राह्मणों का वर्चस्व बना रहे थे. शाही ठाकुरों का. वर्चस्व मतलब जमीन हड़प लेंगे. खरीदेंगे नहीं. पेट्रोल भरा के पैसे नहीं देंगे. कोई आंख मिला के बात नहीं करेगा. सुनने में ये बड़ा रोचक लगता है. पर इस वर्चस्व से जुड़ गया पैसा. रेलवे स्क्रैप की ठेकेदारी मिलने लगी. बहुत पैसा था इसमें. बिना कुछ किये. कहते हैं कि दोनों ने लड़के जुटाए. हथियार जुटाया. और इटली के माफियाओं की तर्ज पर गैंग बना लिये. दोनों माफियाओं के बीच जारी वर्चस्‍व की जंग में पूरा शहर हिल गया था. जनपद मंडल के चार जिलों में कहीं न कहीं रोज गैंगवार में निकली गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई देती थी. आए दिन दोनों तरफ के कुछ लोग मारे जाते थे. कई निर्दोष लोग भी मरते थे. इसकी कई कहानियां हैं. सच्ची-झूठी हर तरह की.

तभी लखनऊ और गोरखपुर विवि के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके युवा विधायक रविंद्र सिंह की हत्या हो गई. कहते हैं कि इसके बाद ठाकुरों के गुट ने वीरेंद्र प्रताप शाही को अपना नेता मान लिया. गोरखपुर माफियाराज से पूरी तरह रूबरू हो चुका था. सरकारी सिस्टम पूरी तरह फेल हो चुका था. प्रदेश की राजधानी में इन दोनों गुटों ने अपनी-अपनी एक समानांतर सरकार बना ली थी. दरबार लगने लगे. जमीनों के मुद्दे इनके दरबार में आने लगे. लोग कोर्ट जाने से बेहतर इनके दरबार को समझने लगे. कहते हैं कि इन दोनों के आशीर्वाद से तमाम छोटे-बडे़ माफियाओं का उदय होने लगा. इसका प्रभाव यहां के सबसे बड़े शिक्षा केंद्र गोरखपुर विवि पर रहा. दखलदांजी यहां की छात्र राजनीति में भी रही. आर्मी तैयार रहती.
 पंडित हरिशंकर तिवारी 
इसी बीच 1985 में गोरखपुर के ही वीर बहादुर सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बन गये. उनके लिए प्रदेश संभालने से ज्यादा महत्वपूर्ण माफियाओं को संभालना था. जनता इसी बात से उनको नाप रही थी कि वो संभाल पाते हैं कि नहीं. वो इसके लिए गैंगस्टर एक्ट लाए. मतलब गुंडा एक्ट. लेकिन दूसरी तरफ दोनों को समाज और राजनीति में स्वीकार कर लिया गया था. पंडित हरिशंकर तिवारी छह बार और वीरेंद्र प्रताप शाही दो बार विधायक चुने गए थे. इन पर आरोप लगता रहा कि ये कानून तोड़ रहे हैं, पर इनके दर पर आकर लोगों को ‘न्याय’ मिल जाता था. नये लोग भी जुड़ने लगे थे. पूर्व विधायक अंबिका सिंह, पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी, पूर्व सांसद ओम प्रकाश पासवान, पूर्व सांसद बालेश्वर यादव आदि का उनके नुमाइंदे बन लोगों के रहनुमा बन चुके थे. कहते हैं कि 90 का दशक आते-आते अपराध राजनीति और बिजनेस में तब्दील हो चुका था.

ये लोग कितने ताकतवर थे इस बात का अहसास एक घटना से हो जाता है. कोयला माफियाओं के सरताज कहलाने वाले सूर्यदेव सिंह के ऊपर जब गाज गिरी तो प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उनके पक्ष में खड़े दिखाई दिए थे.

आखिरकार इलाका घेरने की नौबत आ ही गई. सारे लकड़बग्घे एक साथ नहीं रह सकते थे. 1997 की शुरुआत में श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ शहर में वीरेंद्र शाही को गोलियों से भून दिया. हल्ला हो गया. पुराने माफियाओं की भी चोक ले गई.

श्रीप्रकाश ने अपनी हिट लिस्ट में दूसरा नाम रखा था कल्याण सरकार में कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का. कहा जाता है कि श्रीप्रकाश ने अचानक तय किया कि चिल्लूपार की सीट उसे चाहिए. यूपी कैबिनेट में हरिशंकर तिवारी को छोड़कर वह पूरी ब्राह्मण लॉबी के करीब था. कल्याण सिंह को श्रीप्रकाश निजी दुश्मन मानता था. 6 करोड़ में उसने कल्याण सिंह की सुपारी ले भी ली थी. यूपी में पहली बार STF बनाई गई श्रीप्रकाश को मारने के लिए ही. मार भी दिया गया

हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही की दुश्मनी से ही निकले बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी


बृजेश सिंह

कहते हैं कि हरिशंकर तिवारी से जुड़े दो लोग थे. इनको शार्प शूटर माना जाता था. ये थे साहेब सिंह और मटनू सिंह. नेताओं की छत्र-छाया में जीते-जीते मटनू का मन ऊब चुका था. इसी बीच मुड़ियार गांव में साहेब सिंह के नजदीकी त्रिभुवन सिंह के बड़े पापा की जमीन को लेकर विवाद शुरू हो गया. उनकी एक बेटी ही थी. पर जमीन काफी थी. मटनू ने ये जमीन हथिया ली. त्रिभुवन सिंह ने इस बात का प्रतिवाद किया. जवाब में मटनू के गिरोह ने त्रिभुवन के तीन भाइयों और पिता की हत्या कर दी. इसी मटनू गिरोह से जुड़े थे मुख्तार. बृजेश साहेब सिंह से जुड़े थे. मटनू का नाम ऊंचा होता गया. पर गाजीपुर जेल के पास एक दिन उसे मार दिया गया. शक की सूई कई लोगों पर थी. इसके बाद मटनू के भाई साधु सिंह ने कमान संभाल ली. पर 1999 यूपी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले साधु सिंह को पुलिस कस्टडी में ही अस्पताल में गोलियों से भून दिया गया.कहा जाता है कि इसके बाद इस ग्रुप की कमान संभाल ली मुख्तार ने

उधर पिता की हत्या के बाद बृजेश साहेब सिंह के साथ ही रहने लगा था. ग्रुप में उसका प्रभाव भी था. एक दिन बनारस में जेल से पेशी पर गये थे साहेब. पुलिस के ट्रक से अभी उतर ही रहे थे कि टेलीस्कोपिक राइफल से चली गोली उनकी कनपटी पे लगी. इस हत्या में मुख्तार का नाम आया. फिर ग्रुप की कमान बृजेश सिंह के हाथ में आ गई. अब मुख्तार और बृजेश के बीच मुकाबला सीधा हो गया.


मुख्तार अंसारी

मुख्तार और बृजेश के गिरोह के बीच कई बार आमने-सामने भी गोलियां चलती थीं. मुख्तार ज्यादातर समय जेल में होता था. ये उसके लिए सबसे मुफीद जगह थी. जबकि बृजेश अंडरग्राउंड रहता था. एक बार तो बृजेश सिंह ने गाजीपुर जेल में बंद मुख्तार अंसारी पर गोलियां चलाईं. लेकिन, धीरे-धीरे मुख्तार अंसारी मजबूत पड़ता गया. बनारस में अवधेश राय की हत्या के बाद बृजेश सिंह इस क्षेत्र में कमजोर हो गया. इनके अलावा गोरखपुर में शिव प्रकाश शुक्ला, आनंद पांडेय, राजन तिवारी और श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे लोग भी मैदान में आ गये थे. माना जाता है कि हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के तैयार किये गये लड़के उनके ही गढ़ में उनको चुनौती देने लगे. 1995 तक ये लोग अपने आकाओं के हाथ से बाहर हो चुके थे. ये लड़के इतने उद्दंड थे कि किसी को भी अपने सामने किसी चीज में खड़े नहीं होना देने चाहते थे. इनके टारगेट पर हर वो छुटभैया था जिसके आगे चलकर बदमाश बनने की संभावना थी. इन मनबढ़ू लड़कों ने छोटे-छोटे गुंडों को ठिकाने लगाना शुरू किया. फिर इनके टारगेट में राजनीतिक आका आ गये. श्रीप्रकाश शुक्ला तो हरिशंकर तिवारी को मारकर उन्हीं की विधानसभा चिल्लूपार से चुनाव लड़ने की तैयारी में था. पर ऐसा हो नहीं पाया. पर कई बार कोशिश करने के बाद शुक्ला ने वीरेंद्र शाही को तो मार दिया. बाद में बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी दोनों ही विधान परिषद और विधान सभा में आ गये. इससे पहले दो कट्टर दुश्मन हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही ही ऐसे नेता थे जो सदन में एक साथ आये थे.


हरिशंकर तिवारी की कहानी भारत की राजनीति में स्थान रखती है

हरिशंकर तिवारी उस वक्त उठे थे जब देश में नेता इंदिरा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे. उस वक्त नेता समाजवाद की लड़ाई लड़ रहे थे. जेल जा रहे थे. नई सरकार बनाना चाहते थे. कांग्रेस हटाना चाहते थे. इकॉनमिक सुधार करना चाहते थे. पर गोरखपुर के कुछ लोगों ने अपने लिए अलग जगह बना ली. क्राइम को राजनीति में तब्दील कर दिया. ये वो चीज थी जो आने वाले सालों में राजनीति में छा जाने वाली थी. ये वो ब्रीड थी जो बाद में हर राजनेता का पहला और आखिरी हथियार बन गया. ये वो बैलट था जो चुनाव में जीत पक्की करवा रहा था. ये वो वादा था जिसे जनता पूरा ही समझती थी. हरिशंकर तिवारी ने जाने-अनजाने में राजनीति ही बदल दी. जहां जनता बिजली, पानी, सड़क खोजने लगी थी, अचानक लोग बंदूकें गिनने लगे. गाड़ियों के काफिले गिनने लगे. ये देखने लगे कि किसकी गाड़ी के सामने कौन रास्ता बदल लेता है.
80 के करीब पहुंच चुके हरिशंकर तिवारी स्टूडेंट लाइफ में गोरखपुर में किराए पर कमरा ले के रहते थे. पर आज जटाशंकर मुहल्ले में उनका किले जैसा घर है. इसे हाता के नाम से जाना जाता है. चिल्लूपार से तिवारी 3 बार निर्दलीय विधायक रहे. बाद में 2 बार कांग्रेस के टिकट पर जीते. इनका बेटा कुशल उर्फ भीष्म तिवारी खलीलाबाद से बसपा सांसद है. इनका भांजा गणेश शंकर विधान परिषद का अध्यक्ष है. दूसरा बेटा विनय तिवारी विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनाव हार चुका है. पर हरिशंकर तिवारी का तो फिक्स रहा है. सरकार किसी की भी हो, तिवारी का रसूख बराबर रहता है. 1998 में कल्याण सिंह की सरकार में वो साइंस और टेक्नॉलजी मंत्री रहे. 2000 में रामप्रकाश गुप्ता की सरकार में स्टांप रजिस्ट्रेशन मंत्री रहे हैं. 2001 में राजनाथ सिंह की सरकार में भी मंत्री रहे. फिर 2002 की मायावती सरकार में भी मंत्री रहे. 2003-07 की मुलायम सरकार में भी मंत्री रहे.
80 के दशक में गोरखपुर के चिल्लूपार से हरिशंकर तिवारी और महाराजगंज के लक्ष्मीपुर से वीरेंद्र शाही ने दोनों ने बाहुबल के भरोसे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राजनीति में कदम रखा था. अप्रत्यक्ष रूप से तिवारी को कांग्रेस और शाही को जनता पार्टी सपोर्ट कर रही थी. तिवारी के खिलाफ उसी दौरान दर्जनों मुकदमे दर्ज हुए. हत्या, हत्या की कोशिश, वसूली, सरकारी काम में बाधा जैसे मामले थे. हत्या तो हो ही गई लोगों की. हत्या की कोशिश का मकसद लोगों को डराना था. चाहते तो मार भी सकते थे. पर ये कोशिश से उपजा दृश्य बाकी लोगों के मन में खौफ भर देता है. क्योंकि विक्टिम कई दिन अस्पताल में खून चढ़वाने के बाद विकृत चेहरे के साथ बाहर निकलता है तो बाकी लोगों की रूहें कांप जाती हैं. वसूली तो सर्वाइवल टैक्स है. सरकारी काम में बाधा मतलब टेंडर छीन के भर लेना. नाके पर पुलिस को थप्पड़ जड़ देना. गाड़ी चेक ना करवाना. धुंआ फेंकती जीप लेकर घूमना. अवैध हथियारों से फायरिंग करना. इसका अलग केस बनता है. पुलिस रोके तो उसी के हथियार छीन के फायर कर देना. ये वाला सरकारी काम में बाधा है.
तिवारी ने रेलवे साइकिल स्टैंड, रेलवे स्क्रैप से लेकर बालू तक में हाथ जमा लिया. उस दौर के एकमात्र नेता थे जो जेल में रहने के बाद भी चुनाव जीत गए. चुनाव जीतने का तरीका पुराना ही था. रॉबिनहुड वाला. अपने इलाके में किसी गरीब को परेशान होने नहीं देना है. गाहे-बगाहे मदद कर देनी है. किसी के घर शादी-विवाह में पहुंच कर अनुग्रहीत कर देना है. गरीब आदमी को रेलवे ठेके से क्या मतलब.
फिर वो वक्त भी आया, जब अपराध का ग्लैमर कम हुआ. लोग जानने-समझने लगे थे. डर भी कम होने लगा था. 2007 में श्मशान बाबा के नाम से मशहूर राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को चिल्लूपार में हरा दिया. त्रिपाठी बसपा से थे. त्रिपाठी ने 2012 में भी हरिशंकर तिवारी को हरा दिया. मजे की बात ये है कि अब तिवारी के कुनबे के ज्यादातर नेता बसपा में आ गये हैं. 2017 के चुनाव में आखिरकार हरिशंकर तिवारी को सफलता मिल ही गई है. बेटे विनय को बसपा से टिकट दिलवा दिया है. राजेश त्रिपाठी को बसपा ने टिकट नहीं दिया है. वो भाजपा में आ गये हैं. राजेश त्रिपाठी ने सबसे पहले हरिशंकर तिवारी के परिवार पर जानलेवा हमले का आरोप लगाया है. अपनी हत्या की आशंका जताई है. पर अब हरिशंकर तिवारी पर कोई केस बचा नहीं है. राजनीति कमजोर जरूर है, रसूख कम नहीं हुआ है.
अगर ध्यान से देखें तो ये सारी बातें सरकारी ठेकों के इर्द-गिर्द घूमती हैं. अगर कोई पिता की हत्या का बदला लेने के लिए गैंगस्टर बनता है तो ये एक बार की घटना है. बदला ले लिया, बात खत्म. पर उनको गैंगस्टर बनाए रखने में सरकारी ठेके मदद करते हैं. वो उनको एक नये तरीके की खाद देते हैं